कालाअंब (सिरमौर)। हिमाचल प्रदेश के फार्मा उद्यमियों ने नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं के बढ़ते कारोबार को लेकर गहरी चिंता जताई है। प्रदेश के फार्मा जगत की छवि को नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं के बढ़ते कारोबार से खतरा पैदा हो गया है। प्रदेश के दवा निर्माता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कुछ शातिर माफिया हिमाचल प्रदेश के नाम पर दूसरे राज्यों में नकली दवाएं बना रहे हैं और बाज़ार में सप्लाई कर रहे हैं, जिससे राज्य की विश्वसनीयता को ठेस पहुंच रही है।
हाल ही में हरियाणा के सोनीपत जिले में एक फर्म द्वारा हिमाचल के नाम से नकली दवाएं बनाने का मामला सामने आया। जांच में यह साफ हुआ कि जिन फार्मा कंपनियों के नाम पर दवाएं बनाई गईं, वे वास्तव में हिमाचल में मौजूद ही नहीं हैं। हरियाणा राज्य दवा नियंत्रक मनमोहन तनेजा ने भी इस फर्जीवाड़े की पुष्टि की है। इस मामले में संबंधित फर्म पर कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
हिमाचल ड्रग्स मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष एवं लघु उद्योग भारती की फार्मा विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश गुप्ता, उपाध्यक्ष संजय सिंगला, मनोज गर्ग, नितिन अग्रवाल और डॉ. डी सिंह ने केंद्र सरकार के सीडीएससीओ (Central Drugs Standard Control Organization) से अपील की है कि इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए एक सशक्त टास्क फोर्स गठित की जाए। उन्होंने कहा कि यह केवल फार्मा उद्योग की प्रतिष्ठा का मामला नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की सेहत और जीवन से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है।
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राज्य दवा नियंत्रक मनीष कपूर का कहना है कि नकली दवाओं के ये सभी मामले प्रदेश के बाहर से सामने आए हैं, जबकि इन दवाओं का निर्माण हिमाचल में कहीं भी नहीं हुआ। इससे राज्य की फार्मा इंडस्ट्री को बदनाम करने की कोशिश हो रही है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
प्रदेश के फार्मा उद्योगों ने सरकार और संबंधित एजेंसियों से मांग की है कि—नकली दवा कारोबार पर सख्त कार्रवाई हो।सीडीएससीओ के अंतर्गत एक राष्ट्रीय स्तर की टास्क फोर्स का गठन किया जाए। दवा निर्माण की सत्यता और लाइसेंस की ऑनलाइन सत्यापन प्रक्रिया को और अधिक सख्त बनाया जाए।उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाए जाएं।
यदि नकली दवा माफिया पर शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया तो इसका असर न केवल हिमाचल के फार्मा उद्योग पर पड़ेगा, बल्कि आम लोगों की सेहत भी गंभीर खतरे में पड़ सकती है।