होली 2025 : रंगों का पर्व और इसकी पौराणिक मान्यताएँ

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Sanjay Gupta
By Sanjay Gupta Add a Comment 3 Min Read
फोटो - सांकेतिक : दैनिक जनवार्ता
Highlights
  • होली और धुलेंडी: परंपरा, पौराणिकता और उल्लास का संगम

संक्षिप्त सार

होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और प्रेम का प्रतीक है। यह पर्व आपसी सद्भाव, भाईचारे और उत्साह को बढ़ावा देता है। धुलेंडी पर रंगों की बौछार और होलिका दहन की लौ समाज को यह सिखाती है कि सत्य की हमेशा जीत होती है और जीवन को रंगों की तरह खुशियों से भर लेना चाहिए।

समाचार विस्तार

नाहन (सिरमौर)। होली भारत और नेपाल में मनाया जाने वाला सबसे रंगीन और उत्साहपूर्ण पर्व है। यह त्योहार फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है।

होली मुख्य रूप से दो दिन तक मनाई जाती है—

पहले दिन होलिका दहन किया जाता है।
दूसरे दिन धुलेंडी यानी रंगों की होली खेली जाती है।
हालांकि, इन दोनों दिनों का सीधा संबंध नहीं बताया जाता, लेकिन कुछ धार्मिक मान्यताएँ इनके आपसी संबंध को दर्शाती हैं। आइए जानते हैं होली और धुलेंडी की परंपराएँ, कथाएँ और विशेषताएँ।

होलिका दहन: भक्त प्रह्लाद और असत्य पर सत्य की विजय
होलिका दहन की पौराणिक कथा भगवान विष्णु के अनन्य भक्त प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से जुड़ी हुई है।

कहानी के अनुसार, हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। इससे क्रोधित होकर उसने अपने पुत्र को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की सहायता ली।

होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान था। उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की योजना बनाई, लेकिन ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई।

तभी से होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।

धुलेंडी: रंगों, प्रेम और उमंग का त्योहार
होली के अगले दिन यानी धुलेंडी पर रंगों का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन को लेकर दो प्रमुख मान्यताएँ हैं—

होलिका दहन से संबंधित मान्यता

पहले दिन होलिका की राख को शुभ मानकर उसका तिलक किया जाता था।
समय के साथ राख की जगह गुलाल और रंगों का उपयोग किया जाने लगा।
श्रीकृष्ण और राधा की होली

ब्रज, मथुरा और बरसाने में होली का विशेष महत्व है।
भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम-लीला से प्रेरित होकर धुलेंडी मनाई जाती है।
विशेष रूप से बरसाने की लट्ठमार होली प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाएँ पुरुषों पर लाठियाँ बरसाती हैं।
होली उत्सव की प्रमुख परंपराएँ

  1. रंग खेलना
    लोग गुलाल, अबीर और प्राकृतिक रंगों से एक-दूसरे को रंगते हैं।
  2. भांग और ठंडाई
    होली पर भांग और ठंडाई का विशेष महत्व होता है, जो इस त्योहार की मस्ती को और बढ़ा देता है।
  3. नृत्य और संगीत
    गली-मोहल्लों में फाग और होली के पारंपरिक गीतों पर नृत्य होता है।
  4. गले मिलना और मिठाइयाँ बाँटना
    होली के दिन लोग गिले-शिकवे भुलाकर गले मिलते हैं और गुजिया, मालपुआ, दही भल्ले और अन्य मिठाइयाँ बाँटते हैं।
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