शिमला। हिमाचल प्रदेश को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत केंद्र सरकार से बड़ा झटका लगा है। पहले तो केंद्र ने राज्य सरकार से कार्यदिवसों को घटाने को कहा और अब राज्य को मिलने वाला बजट रोक दिया है। इससे प्रदेश की कई पंचायतों में मनरेगा के काम ठप हो गए हैं और हजारों दिहाड़ी मजदूरों की रोज़ी-रोटी पर संकट मंडराने लगा है।
जानकारी के मुताबिक हिमाचल सरकार को बीते वित्त वर्ष 2024-25 में 397 लाख कार्यदिवस मंजूर किए गए थे। इस वर्ष 407 लाख कार्यदिवस का प्रस्ताव भेजा गया था लेकिन केंद्र ने इसे घटाकर 250 लाख करने को कहा। बजट रोकने से न सिर्फ नए कार्य शुरू नहीं हो पा रहे हैं बल्कि पहले से चल रहे कार्यों के भुगतान पर भी असर पड़ा है।
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प्रदेश में मनरेगा के तहत जल संरक्षण, सूखा राहत, ग्रामीण संपर्क मार्ग, वनीकरण, बाढ़ नियंत्रण जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य किए जा रहे थे। ये कार्य न केवल ग्रामीण विकास में सहायक हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण, महिलाओं के सशक्तिकरण और गांव से शहरों की ओर हो रहे पलायन को रोकने में भी मदद करते हैं।
मनरेगा की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2025-26 में हिमाचल प्रदेश में कुल 5177 कार्य पहले ही मंजूर पड़े हैं, जबकि नए 904 कार्यों को भी मंजूरी मिल चुकी है। मगर बजट की कमी के चलते इन पर कोई व्यय नहीं हो सका है। वर्तमान में केवल 229 कार्य चल रहे हैं जिन पर अब तक 69.89 लाख रुपये खर्च हुए हैं। यानी कुल 6311 कार्यों पर महज 70.16 लाख रुपये का व्यय हो पाया है, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है।
स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार जल्द बजट जारी नहीं करती तो ग्रामीण विकास कार्य पूरी तरह ठप हो जाएंगे और दिहाड़ी मजदूरों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।



