नारी अंतर्मन में छुपी कुछ अनकही बातें, 👉 पढ़िए..कवियत्री ने शब्दों में की बयां

Sanjay Gupta

दैनिक जनवार्ता नेटवर्क
चंडीगढ़। साहित्य हमारे जीवन को निखारता है। साहित्य के द्वारा हम समाज को एक दिशा दे सकते हैं, वहीं कविता – कहानियों के माध्यम से अपने मनोभाव व्यक्त करने का साधन साहित्य ही है। ऐसे ही अपने मनोभाव व्यक्त करते हुए नारी अंतर्मन का चित्रण संजोए हुए चंडीगढ़ से कवियत्री कुमुद चतुर्वेदी की कविता प्रस्तुत की जा रही है।

औरतें होती हैं सफाई पसंद
गाहे बगाहे पाकर थोड़ा सा समय
चमकाने लग जाती हैं घर और मन, कभी जाले झाड़ते झाड़ते
झाड़ देती हैं,मन के किसी कोने में लटकते अधूरे सपने।
शायद भूल जाती हैं कि जालों की तरह, सपने भी दोबारा बुन लेता है मन।।

कभी शाम के समय आंगन बुहारती हैं।
तो उसके साथ ही बुहार आती हैं
पूरे दिन की थकान,
और मुस्कुराती हुई फिर से लग जाती हैं अगले दिन की जद्दोजहद में।।

कभी सुखाने जाती है
यहां वहां पड़े गीले तौलिए,
तो साथ ही डाल देती है रस्सी पर सूखने को एक गीला सा मन।
उन्हें लगता है धूप सुखा सकती है, गीले कपड़ों के साथ साथ
भीगी आँखें भी।।

और किसी रोज़ जब साफ़ करने बैठती हैं, उन कोनों को जहां महीनों से जमी है धूल।
तो छुड़ा लेती हैं अंतस पर काई की तरह जमी, ढेरों बातें जिन्हें कहा नहीं कभी।
कि शायद कहीं उनके हाथ से, फिसल न जाएं उनके अपने,
सच में सफाई करते करते
औरतें साफ़ कर लेती हैं
मन पर लगे दाग़ भी।।
————–कुमुद चतुर्वेदी———-

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